श्री भक्तमाल ९ – श्री उमापति जी | Shri Bhaktmal Katha Part 9 | Shri Umapati Ji

Shri Bhaktmal Katha Shri Umapati Ji
Shri Bhaktmal Katha Shri Umapati Ji

श्री भक्तमाल ९ – श्री उमापति जी

श्री भक्तमाल ९ – श्री उमापति जी

श्री स्वामी राजेंद्रदासाचार्य जी और अयोध्या के संतो से सुने भाव – लगभग सौ साल पुरानी बात है , श्री अयोध्या में एक वसिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण निवास करते थे । भगवान से भक्त जन किसी भी प्रकार का संबंध बनाते आए है । कोई पिता का, कोई भाई कान, कोई गुरु का तो कोई शिष्य का परंतु ऐसे महात्मा कम ही होते है जो श्री भगवान को अपना शिष्य मानते है ।

१. श्री रामजी द्वारा गुरुजी की प्रसादी माला धारण करना और पक्का शिष्यत्व –

अयोध्या के पंडित श्री उमापति त्रिपाठी शास्त्री जी मानते थे कि मैं वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण राम जी के कुल का पुरोहित हूँ और वे मेरे यजमान है । श्री उमापति जी नित्य कनक भवन जाते और पुजारी को अपनी प्रसादी माला दे कर कहते हमारे यजमान को पहना देना । पुजारी भी सिद्ध थे अतः वे उमापति जी के भाव से अच्छी प्रकार परिचित थे । पुजारी जी ने कभी इस बार का विरोध नही किया ।

जब पुजारी जी माला पहना देते तब श्री उमापति जी खड़े होकर आशीर्वाद देते – वत्स ! तुम सदा प्रसन्न रहो ,सदा संतो के प्रिय बने रहो, तुम्हे किसी की नज़र ना लगे । उस समय के जो रसिक संत थे, वे सब उनके सिद्ध भाव का आदर करते थे परंतु कुछ कुछ ऐसे लोग भी थे जिह्ने उमापति जी का यह भाव पसन्द नही आता था ।

Shri Bhaktmal Katha Shri Umapati Ji
Shri Bhaktmal Katha Shri Umapati Ji

 

वे कहा करते थे – अरे ! यह बड़ भारी पंडित बनता है, ठाकुर जी को अपनी पहनी हुईं माला पहनाता है । यदि इसका इतना ही भाव है तो अपने घर मे जाकर करे , यहाँ मदिर में ऐसा करना ठीक नही । लोग क्या सिख लेंगे इनकी हरकतों से । उन लोगो ने पुजारी जी से शिकायत की और कहा कि कृपा करके आज के बाद आप ठाकुर जी को पहनी हुई माला नही अपितु अमनिया माला (नई माला) पहनाएं ।

पुजारी जी ने कहा ठीक है जैसा आप लोग कहे – कल से हम अमनिया माला पहना देंगे । अगले दिन उमापति जी आये तो लोगो ने कहा कि आपकी प्रसादी माला ठाकुर जी नही पहनेंगे । एक नई माला मंगा कर ठाकुर जी को पहनाई गयी । जैसै ही पहनाई गई, माला खंड खंड हो कर गिर गई। इंतने पर भी वे लोग नही माने । उन लोगों ने कहा शायद इसने फूल माला बनाने वाले को पैसे देकर कच्चे धागे मे माला बनवाई ।

अब खूब मोटे पक्के धागे मे माला पिरो कर ठाकुर जी को पहनाई गयी लेकिन धारण कराते ही वह भी खंड खंड हा कर गिर गई। अनेक मोटे धागे की मालाएं इसी प्रकार पहनाते ही गिर जाया करती । श्री उमापति जी ने कहा – देखो ! कनक बिहारी हमारा पक्का शिष्य है । यह अपने गुरु जी की प्रसादी माला पहने बिना दूसरी माला कैसे पहन सकता है , मर्यादा का पक्का है ।

लोगो ने कहा – चलो ठीक है अभी तुम अपनी प्रसादी माला कनक बिहारी सरकार को अर्पण करो, यदि उन्होंने धारण कर ली तो हम मानेंगे की तुम्हे कनक बिहारी जी गुरुदेव के रूप में स्वीकार करते है । उमापति जी ने माली से एक माला ली और ठाकुर कनक बिहारी को कहाँ – वत्स ! यह प्रसादी माला ग्रहण करो । तुम्हारा मंगल हो । ऐसा कहकर पुजारी जी ने कनक बिहारी जी को माला पहनाई और आश्चर्य की ठाकुर जी वह माला पहन ली। वह माला न टूटी और न गिरी ।

२. श्री ठाकुर जी द्वारा गुरुजी के घर के सामने मस्तक झुकाना –

कनक भवन मे ठाकुर जी के तीन स्वरूप है। पहले स्वरूप टीकमगढ़ की महारानी के द्वारा पधराए हुए है ।इनका नाम है श्री महल बिहारी बिहारिणी जी। दूसरे स्वरूप द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी जी के द्वारा पधराए हुए है जो की खड़े है । वे तीर्थ यात्रा करते हुए अयोध्या जी गए तो वहाँ कनक भवन का निर्माण कराया और स्वयं यजमान बन कर सीताराम जी के विग्रह की प्रतिष्ठा की । इनका नाम है श्री कनक बिहारी बिहारिणी जी। तीसरा स्वरूप है छोटे ठाकुर जी जो ढाई हजार वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य के द्वारा विराजमान किए गए । महाराज विक्रमादित्य के नाम से ही विक्रम संवत् चलता है। इनका नाम मणि बिहारी सरकार हैं। ये झूला पर मणि पर्वत जाते है ।

एक बार श्री कनक बिहारी बिहारिणी का डोला उमापति जी के मुहल्ले से निकला तो ठाकुर जी ने सिर झुका लिया । इससे उनका मुकुट गिर गया । बार बार भक्त लोग मुकुट धारण करवाते जाते परंतु बार बार वह गिर जाया करता । तब संतो की समझ में आया कि यह तो श्री कनक बिहारी जी के गुरुदेव का मुहल्ला है । उमापति जी भगवान् के गुरुदेव है । जब तक डोला (पालकी) उमापति जी के मुहल्ले मे हैं, तब तक ठाकुर जी सिर झुका कर ही चलेंगे।

३. श्री किशोरी जी द्वारा खड़े होकर पर्दा लगाना –

श्री उमापति जी जब मंदिर में आते थे तो पुजारी को कह देते – किशोरी जी की तरफ़ का पर्दा धोड़ा सा लगा दो, यह हमारी बहू है। हमारे सामने होने से इनको जरा संकाच होगा क्योंकि हम गुरु है । एक दिन पुजारी जी पर्दा लगाना भूल गए और उमापति जी मंदिर में पहुंच गए तो किशोरी जी ने मस्तक झुका लिया और खड़े होकर अपने हाथ से अपनी ओर का पर्दा बंद कर दिया। यह लीला उमापति जी ने देख ली और दखते ही उमापति पंडित जी के आखों से अश्रुपात होने लगा ।

पुजारी जी ने रुदन करने का कारण पूछा तब उमापति जी कहने लगे कि मेरी बहू इतनी सुकुमारी है की माता कौशल्या ने दीपक की बत्ती आगे बढाने की भी कभी आज्ञा नही दी और आज हमारी बहूरानी को इतना कष्ट उठाना पड़ा । आज के बाद कभी मंदिर में नहीं आऊंगा, वही से आशीर्वाद दूंगा। श्री रामचन्द्र जी को बहुत दुख हुआ, उनकी आँखों से जल निकलने लगा । संतो ने और श्रद्धालु लोगों ने चरणों मे विनती करके उमापति जी को मनाया तब उन्होंने मंदिर में आना स्वीकार किया। आज भी जानकी जी के नेत्रों में संकोच दिखाई पड़ता है। पहले जानकी जी का विग्रह बैठे हुए अवस्था मे था परंतु इस लीला के बाद से वह विग्रह खड़ी अवस्था मे है।

Shri Bhaktmal Katha Shri Umapati Ji


Click here to download : Bhaktmal
Read More :

Narayanpedia पर आपको  सभी  देवी  देवताओ  की  नए  पुराने प्रसिद्ध  भजन और  कथाओं  के  Lyrics  मिलेंगे narayanpedia.com पर आप अपनी भाषा  में  Lyrics  पढ़  सकते  हो।