श्री भक्तमाल ३ – श्री भगवान नारायण दास जी | Shri Bhaktmal Katha Part 3 | Shri Narayan das ji

Shri Bhaktmal Katha Narayan das ji
Shri Bhaktmal Katha Narayan das ji

श्री भक्तमाल ३ – श्री भगवान नारायण दास जी

 

श्री भगवान नारायण दास जी

बाबा श्री गणेशदास जी के शिष्य श्री राजेंद्रदासचार्य जी के श्रीमुख से जैसा सुना वैसा लिख रहा हु , लेखन में भूल चूक के लिए क्षमा करे ।

श्री रामानंदी संप्रदाय के संतों का पंजाब में एक स्थान है – श्री पिण्डोरी धाम । वहां की परंपरा में एक संत हुए है श्री नारायण दास जी महाराज । श्री गुरु परंपरा इस प्रकार है श्री रामानंदाचार्य – श्री अनंतानंदचार्य – श्री कृष्णदास पयहारी – श्री भगवान दास जी – श्री नारायण दास जी । भजन जप साधना आदि के बल से श्री नारायण दास जी दिन दुखी पीड़ित व्यक्तियों को जो भी कहते वो सत्य हो जाता । धीरे धीरे उनके पास आने वालों की भीड़ बढ़ने लगी । यद्यपि नारायण दास जी किसी सिद्धि का प्रयोग नही करते परंतु भगवान के नाम जप के प्रभाव से जो भी उनके पास आता , उसका दुख दूर हो जाता । जब भीड़ बढ़ने लगी तब उनके गुरुदेव श्री भगवान दास जी ने कहा – अधिक भीड़ होने लगी है , यह सब साधु के लिए अच्छा नही है । इन चमत्कारों से भजन साधन मे बाधा उत्पन्न होती है । अब तुम पूर्ण अंतर्मुख हो जाओ, मौन हो जाओ और एकांत में भजन करो । किसी से न कुछ बोलना, न कुछ सुनना, न कोई इशारा करना, केवल रामनाम का मानसिक जप करो ।( इनका नाम भगवान नारायण दास जी प्रसिद्ध हुआ । )

१. बादशाह जहांगीर द्वारा नारायण दास जी को तीक्ष्ण विष पिलाना और श्रीराम नाम की महिमा प्रकट होना – 

नारायण दास जी तत्काल जडवत हो गए और अंतर्मुख होकर साधना करने लगे । किससे कुछ भिक्षा भी नही मांगते , जो किसीने दे दिया वह प्रसाद समझ कर पा लेते । एक दिन नारायण दास जी बैठ कर साधना कर रहे थे , वहीं से जहांगीर बादशाह अपने सैनिकों के साथ जा रहा था । उसने सैनिको से पूछा कि इस हिंदु फकीर को रास्ते से हटाओ ।

सैनिको ने नारायण दास जी से हटने को कहा परंतु वे न कुछ बोले न वहां से हिले । बादशाह ने कहा – लगता है यह कोई जासूस है , इसको गिरफ्तार करके साथ ले चलो । बादशाह उनको अपने साथ लाहौर ले गया (वर्तमान पाकिस्तान) और उनसे बहुत पूछा कि तुम कौन हो? कहां से आये हो ? किसके लिए काम करते हो ? वहां क्यों बैठे थे ? बहुत देर तक पूछने पर भी वे कुछ बोले नही । बादशाह को बहुत क्रोध आया और उसने वैद्य को बुलाकर कहां – भयंकर तीक्ष्ण हालाहल विष (जहर) पिलाकर इसको मार दो ।

वैद्य ने एक प्याले में जहर भरकर उनको पिला दिया पर उनको कुछ हुआ नही । बादशाह ने कहा – और पिलाओ । वैद्य ने दूसरा प्याला जहर पिलाया परंतु नारायण दास जी जैसे थे वैसे ही रहे । ऐसा करते करते बादशाह ने उनको जहर के पांच प्याले पिलाये । बहुत देर तक इंतजार करने पर भी नारायण दास जी मरे नही । बादशाह ने कहा एक और प्याला लाओ परंतु नारायण दास जी सोचने लगे कि पेट तो भर गया और छटा प्याला पिने का मन नही है ।

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इतने में ही उनके गुरुदेव श्री भगवान दास (जो सिद्ध संत थे) जी वहां प्रकट हो गए । वे केवल श्री नारायण दास जी को दिखाई पड़े । उन्होंने कहा – बेटा नारायण ! श्री राम नाम के अमृत का क्या महात्म्य है यह संसार को दिखाने के लिए यह छटा प्याला भी पी जाओ । नारायण दास जी गुरुदेव की आज्ञा मानकर छटा प्याला विष भी पी गए ।

अब बादशाह का माथा ठनका और उसने कहाँ – यह वैद्य हिंदु है इस कारण से इसने कोई चालाकी की है । इसने विष की जगह साधु को कोई मीठा शर्बत पिलाया है । बादशाह ने वैद्य से कहा कि मैंने तुमसे जहर पिलाने का हुक्म दिया अथवा शर्बत?वैद्य ने कहा – हुजूर ! यह शर्बत नही है , यह तो भयंकर विष है । बादशाह ने कहाँ – कैसा जहर? छह प्याले पिलाने पर भी यह मरा नही , हमे संदेह है कि यह जहर नलकी है । वैद्य ने कहा – हुजूर , आप किसी पर प्रयोग करके देख लो ।

सामने जहांगीर बादशाह का हाथी था, उसकी सूंड पर एक बूंद जहर छिडका गया तो वह हाथी तत्काल मर गया । बादशाह कांप गया , उसकी समझ मे आ गया कि यह कोई सिद्ध हिंदु फकीर है । बादशाह ने उनको छोड़ दिया और वे विचरण करते करते पुनः पिण्डोरी धाम आ गए । गुरुजी ने प्रकट होकर उनको हृदय से लगाया और कहां की तुमने श्री राम नाम की महिमा को तुमने प्रत्यक्ष करके दिखाया है , अब मेरी इच्छा है कि तुम आसन ग्रहण करो (महंत बनो) और सबका हित करो ।

नारायण दास जी ने कहां की हमारे बड़े गुरुभाई श्री महेशदास जी को आसान पर बिठाएं और मैं उनकी सेवा मे रहूंगा । महेशदास जी ने काहाँ की गुरुजी की वाणी जिसके लिए निकल गयी वही आसान पर विराजेंगे । नारायण दास जी यह सुनकर रोने लगे और कहने लगे – ना मैन जप किया ना तप किया , भगवान के नाम का जप भी नही किया और महंती गले पड गयी , पूर्व के किसी पाप का यह परिणाम है । बाबा महेशदास जी ने कहा कि आप पूर्व में जैसे भजन साधन करते थे वैसे ही करते रहे ।

आपके भजन मे बाधा नही आएगी , सम्पूर्ण सेवा का भार मैं उठाऊंगा । आपके पास किसीको जाने नही दूंगा ,सब समाधान मै करूँगा । गुरुदेव श्री भगवान दास जी ने कहा – महेशदास जी का दर्शन करने के बाद ही लोग तुम्हारा दर्शन करने अंदर आएंगे । ऐसा कहकर गुरुजी अंतर्धान हो गए । (आज भी बाहर बाबा महेशदास जी की गद्दी है । जो आचार्य आसान पर विराजते हैं और वहां कोई समस्या लेकर आता है तो पहले अर्जी बाबा महेशदास जी के पास लगाई जाती है ।) नारायणदास जी पूर्ववत भजन साधन मे लग गए ।

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२. सिद्धों की कुतिया – 

उधर जहांगीर के मन मे रोज आता था कि पता नही कैसा विचित्र हिंदु फकीर था जो इतने तीक्ष्ण जहर के ६ प्याले पचा गया । उसने बहुत शोध किया और अंत मे यही सोचा कि कुछ लोग नशा बहुत करते है और इस कारण उनका शरीर जहरी हो जाता है, जहर पचाने लायक हो जाता है । कुछ समय बीतने पर एक बार बादशाह जहांगीर पुनः पिण्डोरी आया। उसने बाबा महेशदास जी को देखकर पूछा – बाबा ! कुछ अमल (नशा) करते हो ? बाबा ने कहां – हाँ, अमल करते है ।

बादशाह बोला – कौनसा अमल करते हो ? बाबा बोले श्री राम नाम का अमल करते है । बादशाह को बात समझ मे आयी नही , उसने सोचा होगा किसी तरह का नशा । उसने कहा – बाबा! आजका अमल पूरा हो गया ? बाबा समझ गए कि बादशाह चमत्कार देखना चाहता है । वहां बाहर एक कुतिया रहती थी, बाबा जो प्रसाद लेते उसी मे थोड़ा सा बचाकर उसको खाने के लिए दे देते। वह कुतिया केवल बाबा का प्रसाद ही पाती थी, बाकी कितनी भी बढ़िया चीज़ कोई देता तो उसकी ओर देखती भी नही । बाबा बोले – हमारे अमल का तो पूछो मत परंतु सामने यह कुतिया बैठी है इसका अमल पूरा नही हुआ ।

बादशाह बोला – क्या अमल करेगी ? अफीम का अमल करेगी ? उस जमाने मे सैनिको को अफीम खिलाया जाता था तो साथ मे अफीम की पेटी थी । बाबा महेशदास बोले – हां हां अफीम का अमल करेगी । बादशाह ने कहा – वजीर ! संदूक से अफीम निकाल कर इसको भरपेट अफीम खिलाओ । बाबा ने कहां – खा जाओ अफीम को । वह कुतिया देखते देखते पचास किलो अफीम खा गयी । बादशाह ने कहा कि स्वयं इस कुतिया का वजन २० किलो नही है, वह कहा गयी ५० किलो अफीम । इतना अफीम गया कहाँ? उसने पूछा – बाबा , क्या इसका अमल अभी पूरा नही हुआ ?

बाबा बोले – जब पूंछ हिला रही है तब तक समझना चाहिए कि अमल पूरा नही हुआ । बादशाह बोला और कितना खाएगी ?बाबा बोले -तुझे खा जाएगी, तेरी बादशाहीयत को खा जाएगी , ये सिद्धो की कुतिया है । बादशाह ने अपना ताज उतार का बाबा के चरणों मे रख दिया और बोला – बाबा, आपकी फकीरी के आगे मेरी बादशाहीयत धूल है । बादशाह बोला – बाबा हमे कुछ सेवा दीजिये । बाबा बोले – हम एक लंगोटी के बाबाजी, हमारी क्या सेवा ? इस कुतिया की सेवा करो । बादशाह बोला – कुतिया जितना घूम जाएगी उतनी जमीन संत और गौ सेवा के लिए दे दी जाएगी । वह कुतिया ७०, ००० एकड़ मे दौड़ी । वह सारी जामीन कुतिया को दान में दे दी गयी ।

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