मत्स्य पुराण, भारतीय संस्कृति के १८ महापुराणों में से एक है, जो सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय और पुन: निर्माण की अद्भुत कथाओं का भंडार है। इसी पुराण में भगवान विष्णु के प्रथम अवतार, मत्स्य अवतार की विस्तृत और प्रेरणादायक कथा वर्णित है। यह कथा न केवल मानवता को महाप्रलय से बचाती है, बल्कि ज्ञान और धर्म की रक्षा के महत्व को भी दर्शाती है।
कथा का आरंभ: सत्यव्रत और अलौकिक मछली
प्राचीन काल में, सतयुग के अंत के निकट, एक अत्यंत धर्मात्मा और प्रतापी राजा हुआ करते थे, जिनका नाम सत्यव्रत था। वे अपनी प्रजा के पालन-पोषण के साथ-साथ कठोर तपस्या और धार्मिक अनुष्ठानों में भी लीन रहते थे। एक दिन, वे कृतमाला नदी के तट पर स्नान और संध्या-वंदन कर रहे थे। जब उन्होंने अंजली (दोनों हाथों को जोड़कर) में जल लेकर सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए उठाया, तो उनके हाथ में जल के साथ एक छोटी सी, सुनहरी मछली आ गई।
मछली ने सत्यव्रत से करुण पुकार लगाई, “हे राजन! कृपा करके मुझे इस जल में वापस मत छोड़िए। इस नदी में बड़े-बड़े जलचर रहते हैं, जो मुझे खा जाएंगे। मेरी रक्षा कीजिए!” सत्यव्रत, जो स्वभाव से ही दयालु थे, उस छोटी सी मछली की याचना सुनकर द्रवित हो गए। उन्होंने उस मछली को अपने कमंडलु (जल पात्र) में रख लिया और अपने महल ले आए।
अलौकिक वृद्धि और प्रलय की आहट
अगले दिन, जब सत्यव्रत ने देखा, तो मछली आश्चर्यजनक रूप से बड़ी हो गई थी। वह कमंडलु में समा नहीं पा रही थी। उन्होंने उसे एक बड़े जलपात्र में रखा, परंतु मछली शीघ्र ही उसे भी लांघ गई। फिर सत्यव्रत ने उसे एक छोटे तालाब में रखा, पर वह तालाब भी उसके लिए छोटा पड़ गया। हर बार मछली का आकार बढ़ता ही जा रहा था।
अंततः, सत्यव्रत को यह आभास हुआ कि यह कोई साधारण मछली नहीं है, बल्कि कोई दिव्य शक्ति है। उन्होंने मछली को एक विशाल सरोवर में छोड़ दिया, परंतु वह सरोवर भी कुछ ही समय में अपर्याप्त सिद्ध हुआ। सत्यव्रत ने विवश होकर उस विशाल मछली को समुद्र में प्रवाहित कर दिया।
समुद्र में पहुँचते ही, मछली ने अपना विराट, स्वर्णिम रूप धारण किया। सत्यव्रत, जो अब भी उस अलौकिक जीव के समक्ष खड़े थे, ने पूछा, “हे महामत्स्य! आप कौन हैं? आपकी यह अद्भुत वृद्धि और शक्ति का क्या रहस्य है?”
तब मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने सत्यव्रत को दर्शन दिए और कहा, “हे सत्यव्रत! मैं भगवान विष्णु हूँ। मैं तुम्हारी पवित्रता, दयालुता और धर्मपरायणता से प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण भविष्यवाणी बताने आया हूँ। सात दिनों के भीतर, महाप्रलय आने वाला है। समस्त सृष्टि जल में डूब जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा। केवल वही जीवित रहेंगे जो मेरी शरण लेंगे।”
महाप्रलय और नाव की यात्रा
भगवान विष्णु ने आगे बताया, “तुम्हें एक विशाल नाव का निर्माण करना होगा। उसमें तुम सप्तऋषियों, सभी प्रकार के बीजों, औषधियों और सभी प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को स्थान देना। मैं स्वयं उस नाव की रक्षा करूंगा और तुम्हें इस प्रलय से पार ले जाऊंगा।”
सत्यव्रत, जो अब वैवस्वत मनु के नाम से जाने जाने लगे थे, ने भगवान के आदेशानुसार तुरंत कार्य आरंभ किया। उन्होंने विशालकाय नाव का निर्माण किया और उसमें सप्तऋषियों, सभी आवश्यक बीजों, औषधियों तथा सृष्टि को पुन: स्थापित करने के लिए आवश्यक सभी जीवों को सुरक्षित बिठाया।
जैसे ही सातवाँ दिन पूरा हुआ, प्रलय का भीषण रूप सामने आया। मूसलाधार वर्षा, विनाशकारी तूफान और प्रलयंकारी लहरों ने पूरी पृथ्वी को अपनी चपेट में ले लिया। चारों ओर केवल जल ही जल था। उस भयंकर जल प्रलय के मध्य, भगवान विष्णु एक विशालकाय मछली के रूप में प्रकट हुए, जिनकी पीठ पर एक विशाल सींग था।
मनु ने भगवान के निर्देशानुसार अपनी नाव को उस सींग से बांध दिया। मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने अपनी शक्ति से नाव को उन भयंकर लहरों और तूफानों के बीच सुरक्षित रूप से खींचा। इस यात्रा के दौरान, भगवान विष्णु ने मनु को ब्रह्मज्ञान, सृष्टि के रहस्यों और धर्म के महत्व का उपदेश दिया।
वेदों का उद्धार और नई सृष्टि का आरंभ
इस महाप्रलय के दौरान, एक और महान संकट उत्पन्न हुआ। हयग्रीव नामक एक दैत्य ने सोए हुए भगवान ब्रह्मा से चारों वेदों को चुरा लिया और उन्हें पाताल लोक में छिपा दिया। वेदों के बिना सृष्टि का ज्ञान और धर्म अधूरा रह गया था।
जब प्रलय शांत हुआ और जलस्तर कम होने लगा, तब मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने हयग्रीव दैत्य का वध किया। उन्होंने चुराए हुए चारों वेदों को अपने मुख में धारण किया और पाताल से बाहर आकर उन्हें पुनः भगवान ब्रह्मा को सौंप दिया। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने वेदों की रक्षा की और ज्ञान के प्रकाश को पुन: स्थापित किया।
इसके पश्चात, मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने मनु और सप्तऋषियों को हेमवन्त पर्वत (हिमालय) की चोटी पर सुरक्षित पहुंचाया, जहाँ जल नहीं पहुंचा था। जब सृष्टि का जलस्तर सामान्य हुआ, तब मनु ने भगवान के दिए हुए बीजों और जीवों के साथ नई सृष्टि का आरम्भ किया। उसी को वैवस्वत मनु का काल या सतयुग का पुन: आरंभ कहा जाता है।
मत्स्य अवतार का महत्व
मत्स्य अवतार की यह कथा हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देती है:
- धर्म की रक्षा: जब भी पृथ्वी पर अधर्म और अराजकता बढ़ती है, भगवान विष्णु धर्म की स्थापना और भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।
- ज्ञान का महत्व: वेदों का उद्धार यह दर्शाता है कि ज्ञान और धर्म ही सृष्टि के आधार हैं, और उनकी रक्षा सर्वोपरि है।
- दया और शरणागति: सत्यव्रत (मनु) की दयालुता और भगवान विष्णु की शरणागति ने उन्हें और समस्त सृष्टि को विनाश से बचाया।
- निरंतरता: यह अवतार सृष्टि के एक चक्र के अंत और दूसरे के आरंभ का प्रतीक है, जो जीवन की निरंतरता को दर्शाता है।
मत्स्य पुराण में वर्णित यह कथा भगवान विष्णु के उस विराट स्वरूप का परिचय देती है, जो न केवल सृष्टि का संहार होने से बचाता है, बल्कि ज्ञान के प्रकाश को पुन: स्थापित कर नई आशा का संचार भी करता है।